दोहरापन
बरखा से है प्यार ।
और छतरी. फैलाता है।।
सर्दी से है चाह।
और चादर फैलाता हैं ।।
प्यार के है दो रंग।
सोच के दिल घबराता है।।
दर्द देता है वो सजा।
बिना खता मिल जाता है।।
वस्तुओ के है गिरने के नियम।
मनुष्यता बिन नियम गिर जाता हैं ।।
जिन्दगी जीने के लिए भी।
इंसान कई बार मर जाता है।।
त्रिभुवन लाल साहू
भिलाई नगर ,छत्तीसगढ़
Tags
राज्य