दूसरो के उत्कर्ष से दुखी होने वाला कभी भक्त नहीं हो सकता: डॉ मिश्र
प्रशंसा और निन्दा में सम भाव रखने वाला ही असली साधक : मदन मोहन
सुल्तानपुर, न्यू गीतांजलि टाइम्स। नेताजी सुभाष सरस्वती विद्या मंदिर चांदा परिसर में आयोजित दिवसीय मानस सम्मेलन के प्रथम दिवस में वाराणसी से पधारे डॉ मदन मोहन मिश्रा ने उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि सत्संग से हमारे जीवन का अहंकार समाप्त होता है। नारद प्रसंग की चर्चा करते हुए डा मिश्र ने कहा काम को ब्रम्हचर्य से जीता जा सकता, लोभ को दान से जीता जा सकता है, क्रोध को शांति से जीता जा सकता है लेकिन मैं शांति प्रिय हूं यह अहंकार घातक है। मैं अहंकारी नहीं हूं सबसे बड़ा अहंकार है। डॉ मिश्र ने कथा को आगे बढ़ाते हुए दूसरे के उत्कर्ष से दुखी होने वाला कभी भक्त नहीं बन सकता। हमे किसी का नुकसान नही करना चाहिए। प्रशंसा और निन्दा में सम भाव रखने वाला ही असली साधक होता है।भोपाल से पधारी साध्वी प्रेम लता मिश्रा ने हनुमत चरित्र की चर्चा करते हुए कहा कि भीतर की अच्छाई को सत्संग के माध्यम से जागृत किया जा सकता है, हनुमान जी ने रावण के झूठ को सार्वजनिक करके मानसिक तौर पर उसे कमजोर कर दिया। हनुमान ने विभीषण को अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करने की प्रेरणा दी । प्रतापगढ़ से पधारे पं o आशुतोष द्विवेदी मानस प्रवक्ता ने कहा सुंदर तन वाले को भगवान के पास जाना पड़ता है लेकिन सुंदर मन वाले के पास भगवान स्वयं चलकर आते हैं। सती ने कथा नहीं सुनी जिस कारण जलकर मर जाना पड़ा किन्तु सीता जी जलकर मरना चाहती थी किन्तु हनुमान ने कथा सुना कर उनका सारा दुःख समाप्त कर दिया ,सत्संग के बिना अनुराग नही होता और अनुराग के बिना भगवान की प्राप्ति संभव नहीं है । इसके पर्व एस एन सीनियर सेकेंड्री कॉलेज के प्रबंधक अनिल दुबे ने दीप प्रज्वलन मानस पूजन के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस मौके पर सभाजीत मिश्र, रामलवट दूबे, रामबहादुर त्रिपाठी की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। कार्यक्रम का संचालन विद्याधर तिवारी ने किया। बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने कथा श्रवण किया।