पर्यावरण और हम

पर्यावरण और हम


पंचतत्वों से तुझे बनाया

इसे बचाने तुझे चेताया।

मंजर अनदेखा कर

कहता मुझे नही बताया।

 

अतिवृष्टि भुस्लखन

दरक रहे पहाड़

बचालो मुझे

हिमालय करे चित्कार

आश्वासन बाद कटे अरण्य

बचालो मुझे हसदेव करे पुकार।

 

काटा पेड़ तो

बार बार बताया

पर मिला मुफ्त तो

कीमत न लगाया।

 

उजाड के जंगल

बेजुबाँ को सताया 

गमला से करता प्रेम

कैसा शहर बसाया।

 

इक्कीसवीं सदी

दम तोड़ती नदी

देख धुंआ  धुंआ हैं

मान मौत का कुआँ है।

मशीनो के महत्वाकांक्षी

देख दाना को तरसे पंछी।

शिक्षित है समझदार हैं

पेड़ो के कर्जदार हैं ।

 

पेड़ जमीन पर लगाये

पेड़ खुद के लिए लगाये

पेड़ से छाव पेड़ से फल

पेड़ से आज पेड़ से कल।

 

     त्रिभुवन लाल साहू

भिलाई इस्पात संयंत्र दुर्ग( छत्तीसगढ़)

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