राम कथा के ज्ञान से मन और मस्तिष्क निर्मल होता है
रामकथा के श्रवण से मन के राग द्वेष ईर्ष्या और भेदभाव स्वतः समाप्त हो जाते हैं।
सुलतानपुर, न्यू गीतांजलि टाइम्स। बाबा जनवारीनाथ सेवा संस्थान द्वारा आयोजित सात दिवसीय पार्थिव शिवलिंग रुद्राभिषेक व संगीतमय श्री राम कथा के अन्तिम दिन कथा व्यास पंडित सुधांशु तिवारी जी महाराज ने लंका काण्ड का मार्मिक वर्णन करने हुए कहा कि शान्ति के सारे प्रयास असफल हो जाने पर युद्ध आरम्भ हो गया। लक्ष्मण और मेघनाद के मध्य घोर युद्ध हुआ। शक्तिबाण के वार से लक्ष्मण मूच्र्छित हो गये। उनके उपचार के लिये हनुमान सुषेण वैद्य को ले आये और संजीवनी लाने के लिये चले गये। गुप्तचर से समाचार मिलने पर रावण ने हनुमान के कार्य में बाधा के लिये कालनेमि को भेजा जिसका हनुमान ने वध कर दिया। औषधि की पहचान न होने के कारण हनुमान पूरे पर्वत को ही उठा कर वापस चले। मार्ग में हनुमान को राक्षस होने के सन्देह में भरत ने बाण मार कर मूच्र्छित कर दिया परन्तु सच जानने पर अपने बाण पर बिठा कर वापस लंका भेज दिया। इधर, औषधि आने में विलम्ब देख कर राम प्रलाप करने लगे। सही समय पर हनुमान औषधि लेकर आ गये और सुषेण के उपचार से लक्ष्मण स्वस्थ हो गये। रावण ने युद्ध के लिये कुम्भकर्ण को जगाया। युद्ध में कुम्भकर्ण ने राम के हाथों परमगति प्राप्त की। लक्ष्मण ने मेघनाद से युद्ध करके उसका वध कर दिया। राम और रावण के मध्य अनेकों घोर युद्ध हुये और अन्त में रावण राम के हाथों मारा गया। विभीषण को लंका का राज्य सौंप कर राम, सीता और लक्ष्मण के साथ पुष्पक विमान से अयोध्या के लिये प्रस्थान किया। सीता, लक्ष्मण और समस्त वानरसेना के साथ राम अयोध्या वापस पहुँचे। राम का भव्य स्वागत हुआ। भरत के साथ सर्वजनों में आनन्द व्याप्त हो गया। वेदों और शिव की स्तुति के साथ राम का राज्याभिषेक हुआ। चारों भाइयों के दो-दो पुत्र हुये। रामराज्य एक आदर्श बन गया। कथा के अंतिम दिन श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा
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