जब चामुंडा दर्शन के लिए नहीं पहुंच सकीं इंदिराजी ; पुजारी ने कहा देवी क्षमा नहीं करेंगी ; अगले दिन संजय को खोया

जब चामुंडा दर्शन के लिए नहीं पहुंच सकीं इंदिराजी ; पुजारी ने कहा देवी क्षमा नहीं करेंगी ; अगले दिन संजय को खोया


राज खन्ना

 सुल्तानपुर, न्यू गीतांजलि टाइम्स 1977 में इंदिरा गांधी की पराजय का जिम्मेदार संजय गांधी को माना गया था। इमरजेंसी की तमाम ज्यादतियां भी संजय के मत्थे गई थीं।  जनता लहर के बाद मान लिया गया था कि नेहरू - गांधी परिवार का सूरज अस्त हो गया। इंदिरा और संजय दोनों सरकार के निशाने पर थे। शुरुआत में तो इंदिरा बहुत ही निराश थीं। लेकिन संजय ने संघर्ष का रास्ता चुना। फिर इंदिरा ने अगुवाई संभाली। जनता सरकार के अंतर्विरोधों ने उनका काम आसान किया। 1980 में लोकसभा की 353 सीटों के साथ इंदिरा की धमाकेदार वापसी हुई। इनमें लगभग 150 ऐसे सांसद थे , जिनका संजय की बदौलत राजनीति में प्रवेश हुआ था। वे संजय के इशारे पर उठने - बैठने वाले लोग थे। केंद्र की सत्ता पर कब्जे के बाद इंदिरा ने नौ राज्यों की गैरकांग्रेसी सरकारों को बर्खास्त कर दिया था। विधानसभा के चुनावों में भी तामिलनाडु के अलावा  अन्य राज्य कांग्रेस की झोली में आ गए थे। 1980 में संजय गांधी एक बार फिर सर्वशक्तिमान हो चुके थे। उनकी अगली भूमिका पर सबकी निगाह थी। कोई सोच भी नहीं सकता था कि संजय की कोई बात इंदिरा टाल सकती हैं। दिलचस्प है कि इस पारी में संजय केंद्र में नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश में बड़ी भूमिका निभाने की तैयारी में थे। वे उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनना चाहते थे। उनके नजदीकी साथी अकबर अहमद डंपी 31मई 1980 इस काम के लिए लखनऊ पहुंचे। विधायकों तक संदेश पहुंचा दिया। आगे विधायक दल की बैठक में उन्हें नेता चुने जाने की औपचारिकता पूरी की जानी शेष थी। केंद्रीय मंत्री शिवशंकर पर्यवेक्षक बनाए गए थे।  4 जून को उनकी मौजूदगी में विधायकों ने संजय गांधी के नाम पर मोहर लगा दी। अंतिम निर्णय इंदिरा जी पर छोड़ दिया गया। रक्षा राज्य मंत्री सी.पी.एन.सिंह के साथ सेना के विमान से डम्पी दोपहर में ही दिल्ली पहुंच गए । इंदिरा जी को प्रस्ताव सौंपा। जवाब न का था। डम्पी ने बताने की कोशिश की कि विधायकों की पसंद संजय गांधी हैं। इंदिरा जी ने अनुभव का सवाल उठाया। डम्पी  ने कहा इसके लिए उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी से बेहतर क्या हो सकता है ? इस बार चिड़चिड़ाते हुए उन्होंने इंकार किया। उन दिनों डंपी का गांधी परिवार से चौबीसों घंटों का साथ था। डिनर पर डम्पी ने एक और असफल कोशिश की। इंदिरा जी ने कहा कि किसी अन्य को चुन लो। उसे मैं मान लूंगी। इंदिरा जी ने एच.के.एल.भगत से भी कहा था कि अपने दोस्त (संजय) से कह दो कि वह उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री नहीं बन सकता। फिर भी अगर इसके लिए जिद करेगा तो मैं इस्तीफा दे दूंगी। संजय जिनकी हर जिद इंदिरा पूरी करती थीं , ने इस बार कोई जिद नहीं की। संजय ने विश्वनाथ प्रताप सिंह का नाम आगे किया और इंदिरा ने उस पर अपनी सहमति दे दी। क्या संजय को अपनी जिंदगी के बचे कम वक्त का अहसास हो गया था ?   22 जून 1980। यह तारीख थी , जब इंदिरा गांधी को चामुंडा देवी के दर्शन के लिए पालमपुर पहुंचना था। वहां देवी दर्शन के बाद हवन और लंगर का उनका कार्यक्रम था। सरकार में वापसी के तुरंत बाद उन्हें चामुंडा देवी के दर्शन की सलाह मिली थी। व्यस्त इंदिरा ने कुछ महीनों की मोहलत मांगी थी। यह समय अब आ गया था। उनके निजी कार्यक्रमों की व्यवस्था देखने वाले अनिल बाली और पंकज मोहन वहां पहुंच चुके थे। राज्य की कांग्रेसी सरकार इंतजाम में कोई गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहती थी। हिमाचल के तत्कालीन मुख्यमंत्री राम लाल अपनी कैबिनेट सहित  पालमपुर में कैंप कर रहे थे। व्यवस्थाओं को अंतिम रूप दिया जा रहा था कि अचानक 20 जून की शाम प्रधानमंत्री के कार्यक्रम के निरस्त होने की वहां सूचना पहुंची।  मंदिर के पुजारी को जब इंदिराजी के न आने की सूचना प्राप्त हुई तो उनकी प्रतिक्रिया नाराजगी भरी थी। तीखे लहजे में उन्होंने कहा , " जाकर इंदिरा गांधी को बता दो। यह चामुंडा देवी हैं। किसी आम आदमी के न पहुंचने पर मां क्षमा कर सकती हैं । लेकिन अगर कोई शासक अवज्ञा करता है तो मां उसे क्षमा नहीं करेंगी। वो देवी की अवमानना नहीं कर सकतीं। नीरजा चौधरी ने अपनी किताब ' How Prime Ministers Decide ' में इस प्रसंग का विस्तार से जिक्र करते हुए लिखा है कि अनिल बाली ने पुजारी को यह कहते हुए शांत करने का प्रयत्न किया था कि कोई बड़ी विवशता होगी ,जिस वजह से प्रधानमंत्री को कार्यक्रम निरस्त करना पड़ा होगा। इंदिरा नहीं पहुंच सकीं थीं। लेकिन तय तारीख 22 जून को ही उनकी अनुपस्थिति में  सहयोगियों ने मंदिर में पूर्व निर्धारित सभी अनुष्ठान विधिवत संपादित कराए थे। 23 जून की सुबह अनिल बाली और पंकज मोहन चामुंडा से निकले। अभी वे पचास किलो मीटर दूर ज्वालामुखी मंदिर पहुंचे थे कि बाली का सेक्रेट्री दौड़ता हुआ आया और बताया कि संजय गांधी का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया है, जिसमें उनकी मौत हो गई । अनिल और पंकज फौरन ही दिल्ली के रास्ते पर थे । दोपहर  ढाई बजे वे इंदिरा जी के आवास पर पहुंचे। संजय के शव के निकट बैठी दुखी इंदिराजी ने तुरंत ही बाली को किनारे ले जाकर पूछा , क्या इस हादसे की वजह मेरा चामुंडा के दर्शन के लिए न पहुंचना है ? बाली ने उन्हें सांत्वना देने की कोशिश करते हुए कहा था कि इस समय नहीं। बाद में आपको बताऊंगा। संजय गांधी की मृत्यु ने इंदिराजी को बुरी तरह तोड़ दिया था। उनके दिल -दिमाग पर चामुंडा प्रसंग हावी था। चौथे के दिन वे सुनील दत्त और नरगिस के साथ बैठी हुई थीं। तभी अनिल बाली वहां पहुंचे थे। इंदिरा जी तुरंत ही बाली को किनारे ले गईं और उनसे कहा अब बताओ। बाली ने उनके कार्यक्रम निरस्त होने की खबर मिलने के बाद वहां पुजारी की प्रतिक्रिया सहित पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी। इंदिरा जी ने याद करने की कोशिश की थी कि किसने उनका कार्यक्रम निरस्त कराया ? उस समय वे जम्मू की यात्रा में थीं। संजय उनके साथ थे। वापसी में संजय को भी उनके साथ चामुंडा के दर्शन -पूजन के लिए आना था। लेकिन  बताया गया कि चामुंडा में मौसम काफी खराब है। जोरदार बारिश हो रही है। वहां हेलीकॉप्टर उतरना मुमकिन नहीं होगा। ये जानकारी मिलने पर उन्होंने एक दिन पहले ही दिल्ली वापसी का फैसला किया। चकित बाली जो कि उस दिन चामुंडा मंदिर क्षेत्र में मौजूद थे, ने इंदिरा जी को बताया था कि वहां मौसम बिल्कुल ठीक था और उस दिन बारिश भी नहीं हुई थी। इंदिराजी ने संजय की मृत्यु के लिए खुद को जिम्मेदार माना। उन्होंने पुपुल जयकर से कहा था, " संजय की मृत्यु मेरी गलती से हुई। जो अनुष्ठान और प्रार्थना मैं करना चाहती थी, वो मैं नहीं कर सकी।" कुछ महीने बाद इंदिराजी के निर्देश पर अनिल बाली ने एक बार फिर चामुंडा मंदिर पर उनके दर्शन - पूजन का कार्यक्रम निश्चित किया। 13दिसंबर 1980 को वे वहां पहुंचीं।अनुष्ठान कराने वाले पंडित ने याद किया , " उन्होंने कहा था कि वे पक्की हिन्दू हैं। उन्होंने मंत्र पढ़े। पूर्णाहुति दी। गर्भगृह में उन्होंने मत्था टेका और काली पूजा के समय की उनकी मुद्राएं। सभी कुछ उन्होंने पूर्णता से संपादित किया। " पंडित के अनुसार ये सब करते वे लगातार रो रही थीं। वहां पहुंचते समय भी वे रो रही थीं। पंडित ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा था कि आपके साठ करोड़  बेटे - बेटियां हैं। उन्हें देखिए। आज के बाद मत रोइएगा। फिर इंदिरा जी ने प्रसाद लिया। मंदिर की परिक्रमा की। बाहर पौधे रोपे। वे माली जगन्नाथ शर्मा को साथ ले गईं थीं। इस मौके पर गृहमंत्री बूटा  सिंह और मुख्यमंत्री राम लाल भी उनके साथ थे। उन्होंने चामुंडा में संजय की स्मृति में एक घाट भी निर्मित कराया। इसके अस्सी लाख खर्च की व्यवस्था सुखराम ने की थी , जो बाद में केंद्रीय मंत्री बने।

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