भागवत कथा के अंतिम दिन बताई जीवन जीने की कला

भागवत कथा के अंतिम दिन बताई जीवन जीने की कला


संवाददाता, सुलतानपुर   लंभुआ तहसील के मुरारचक गांव में पिछले सात दिनों से चल रही श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन व्यास ने कथा का सारांश कह जीवन को जीने की कला भी समझाई। उन्होंने कई उपदेशात्मक वृतांत सुनाकर भक्तों को निहाल भी किया। अयोध्या धाम से आए कथा वाचक आचार्य पुनीत तिवारी जी महाराज ने कथा के अंतिम दिन सातों दिन की कथा का सारांश किया। उन्होंने बताया कि मनुष्य का जीवन कई योनियों के बाद मिलता है। इसे कैसे जीना चाहिए, यह भी समझाया। कथा वाचक ने सूर्यदेव से सत्रजीत को उपहार स्वरूप मिली मणि का प्रसंग सुनाते हुए मणि के खो जाने पर जामवंत और श्रीकृष्ण के बीच 28 दिन तक चले युद्ध और फिर जामवंती, सत्यभामा समेत से श्रीकृष्ण सभी आठ विवाह की कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि कैसे प्रभु ने दुष्ट भौमासुर के पास बंदी बनी हुई 16 हजार 100 कन्याओं को मुक्त करवाया और उन्हें अपनी पटरानी बनाकर उन्हें मुक्ति दी। उन्होंने सुदामा चरित्र को विस्तार से सुनाया। कृष्ण और सुदामा की निश्छल मित्रता का वर्णन करते हुए बताया कि कैसे बिना याचना के कृष्ण ने गरीब सुदामा का उद्धार किया। मित्रता निभाते हुए सुदामा की स्थिति को सुधारा। गौ वध का विरोध और गौ सेवा करने पर भी जोर दिया। कथा में पहुंचे अवधूत उग्रचण्डेश्वर कपाली महाराज का भी आयोजक मंडल ने स्वागत सत्कार किया। अंत में मुख्य यजमान राजपति मिश्र व लालपति मिश्रा ने कथा सुनने व सुनाने आये सभी लोगों का आभार जताया। ब्राह्मणों को दिया दान  कथा आयोजक के पुत्र युवा समाजसेवी हर्षित मिश्र व विपुल मिश्र समेत अन्य परिजनों ने 101 ब्राह्मणों को अंगवस्त्र ओढ़ाकर व दान देरक आशीर्वाद लिया। कथा में महिलाओं को राधा-रानी की चुनरी भेंट की गई। संचालन सत्य प्रकाश मिश्र एडवोकेट ने किया। मौके पर यज्ञाचार्य कर्मराज तिवारी, पुरोहित भगौती प्रसाद ओझा, देवी प्रसाद ओझा, दिनेश मिश्र, श्री नारायण मिश्र, प्रभुनाथ मिश्र, ओम प्रकाश मिश्र, अंजनी मिश्र, वीरेंद्र मिश्र, सत्येंद्र विक्रम मिश्र , पिस्सू यादव आदि रहे। 

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