रामा देवी ने गौरैया संरक्षण का उठाया वीड़ा
पशु पक्षियों की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म -
सुल्तानपुर, न्यू गीतांजलि टाइम्स। घर आंगन में सुबह शाम बेखौफ चूं चूं करने वाली गौरैया के संरक्षण की भारतीय परंपरा का एक लम्बा काल खंड उसे घरेलू चिड़िया होने को प्रमाणित करता है। तभी तो आज भी गांवो मे गौरैया के आवास और भोजन पानी उपलब्ध कराने की पहल पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। पिछले चार दशक पूर्व पर नजर डालें तो गांवो में चिड़िया अपना घोंसला छप्परों में लगाया करती थी,और उसमें अंडा देकर बच्चों की देखरेख करती थी। समय बीतता गया छप्पर गायब होते गए छप्पर की जगह कंक्रीट के पक्के मकानो ने ले लिया। गर्मी के मौसम में चिड़ियों के रहने के लिए और घोसला बनाने के लिए जगह ही नहीं बची। जिससे गौरैया विलुप्त होती गई। गर्मी के इस मौसम मे बुजुर्ग लोग गौरैया ही नहीं सभी पशु पक्षियों के पीने के लिए एक कसोरे में पानी और दूसरे में दाना दरवाजे के सामने नीम के पेड़ व आस पास छाया वाली जगह रख दिए जाने की परम्परा रही है। घर की महिलाएं भी अपनी पारिवारिक जिम्मेदारी के साथ इस पुनीत कार्य की जिम्मेदारी उठाती चली आ रही हैं। ऐसा ही जनपद के नौगंवातीर निवासी बुजुर्ग महिला रामा देवी पत्नी शिव बख्श सिंह अवकाश प्राप्त शिक्षक विलुप्त होती गौरैया के संरक्षण का बीडा उठाया है और इस कार्य को बड़े मनोयोग से आगे बढ़ा ही नहीं रही है। अपितु अपने गांव के हर परिवार को भी गौरैया संरक्षण के लिए प्रेरित भी कर रही है। उन्होंने अपने घर में अपने बच्चों से मंगाकर दर्जनों "गौरैया घर" दीवारों पर टांग दिया है।और रोज दाना पानी डालना नहीं भूलती है। इसके लिए उन्होंने घर के अंदर गौरैया का घोंसला और बाहर मिट्टी के बर्तन में पानी और दाना रोज डालती हैं इसका प्रभाव यह रहा कि उन घोसलों में गौरैया ने अपना आशियाना बना लिया, और अपने परिवार के कुनबे को आगे बढ़ा रही हैं। और उन घोसलो मे अण्डो से बच्चे बाहर आ रहे है। श्रीमती रामादेवी ने बताया कि, उनको इस कार्य के लिए बचपन में ही उनके माता-पिता प्रेरित करते रहे। और उनको पशु पक्षियों से बहुत लगाव हो गया जिसे मैंने विवाह होने के बाद भी इस कार्य को अपने जीवन का अंग बना लिया। जिसमें मेरे सास-ससुर और मेरे परिवार का बड़ा सहयोग रहा। उन्होंने तो इन पक्षियों के भोजन के लिए सांवा , कोदो, काकुन, मकरा जैसे खाद्यान्न भी अपने खेत मे कई सालो से उपजाती है। जो पक्षियों के भोजन के लिए पूरे साल काम आता है। उन्होंने कहा कि मेरे बच्चों में भी यह संस्कार बैठ गया है । जो आज भी इन फसलों को अपने खेत मे बोआई जरुर कराते हैं। सुबह शाम गौरैया की चूं चूं और पक्षियों की चहचहाहट से सच कहें घर आंगन गुलजार हो जाता है और मन को बड़ी शांती मिलती है।